पॉंव जरा दुबक गये
मुडके देखा तो पाया
तुम वहींसे गुजर रहें
एक नया सितारा
दिखा दोपहरी गगनमें
बिनबहार गुलीस्ता
खिल गया चमनमें
खुशनुमा हुए दिन
रातें जैसे गाने लगी
बेमुरव्वत जिंदगी
अब गले लगाने लगी
तसव्वुर में तुम रहें
नगमा नया सुनाते
गम खुशी चलते रहे
साथ कदम मिलाते
काश! ये पल थमें
चले ना, यही रूके
चलता रहे सफर
के जब तक चल सके
सांसोसे बंधी सांस हो
जैसे लिपटी गुलसे महक हो
जहन में और कुछ ना हो
यही आखरी ख्वाईश हो
- संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, १६/०४/२०२५)