Saturday, February 22, 2025

तनहाईके उस मोडपर

तनहाईके उस मोडपर
पॉंव जरा दुबक गये
मुडके देखा तो पाया
तुम वहींसे गुजर रहें

एक नया सितारा 
दिखा दोपहरी गगनमें
बिनबहार गुलीस्ता
खिल गया चमनमें

खुशनुमा हुए दिन
रातें जैसे गाने लगी
बेमुरव्वत जिंदगी
अब गले लगाने लगी

तसव्वुर में तुम रहें
नगमा नया सुनाते
गम खुशी चलते रहे
साथ कदम मिलाते 

काश! ये पल थमें 
चले ना, यही रूके
चलता रहे सफर
के जब तक चल सके
 
सांसोसे बंधी सांस हो  
जैसे लिपटी गुलसे महक हो 
जहन में और कुछ ना हो
यही आखरी ख्वाईश हो

- संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, १६/०४/२०२५)

वारा आणि दिवा

वाऱ्याच्या झुळूकी रात्रभर काहीतरी सांगून जात होत्या दिव्यातल्या दिव्यात वाती जोरात हेलकावे खात होत्या विझायचं की तेवत रहायचं दिव्यांचं नक्की...