Tuesday, July 20, 2021

तरकश-ए-तीरोंसी ऑंखोसे लडना है

तरकश-ए-तीरोंसी ऑंखोसे लडना है,
इन पर्दो से लड मरने में खाक मजा है?


यूं फेरी निगाहे, अंदाज-ए-रसूक से
मेरा मरना तुमपे क्या अब बेवजा है?


आलम-ए-बेरूखी चश्मेसी साफ है अब
पहरेदार गली मे अब कोई दुजा है?


अश्को से नहायी लो गिर पडी ये गजले
अलफाज-ए-नगीना अब नही पाकिजा है?


-संदीप चांदणे (२०/१०/१५)

No comments:

Post a Comment

Man and book

Man slowly was becoming man Once alone then part of a clan He learned to speak, he carved the wheel, Left the cave, built home, found the fe...