Sunday, May 14, 2023

माधुरी

कहीं किसी महफिल में
खामोश बैठा हुआ था
गुफ्तगू करने लायक कोई
शख्स आसपास नहीं था
बस कुछ चेहरे मुसकुराकर
दाए-बाए बैठ जाते
या फिर आगे
अपने कामसे चलें जाते
इस तरह बहुत देर तक
उब सा जाने के बाद
कुछ जवॉं और गैरमर्द आवाजें
कानो में पडी,
देखा तो
खिलखिलाहटोंका एक टोला
अपने बीच एक
नायाब हॅंसी को जैसे 
छुपाके ले जा रहा था
कुछ देर तलाशनेके बाद
उस हॅंसी के होट
और फिर
पूरा चेहरा दिखाई पडा
अब महफिल यकायक
हसीन हो उठी
संवर के बैठा
और
कुछ ठान भी लिया मन में
कहाँकी है? करती क्या है?
कम-अस-कम नाम तो पता चलें
जनाब! कुछ देर पहले का जी,
जो उब रहा था, अब बेचैन हो उठा
घडी-घडी में क्या ही हो जाता हैं!
खैर, किसीने आवाज देकर पुकारा
तो उस हॅंसी ने मुडकर
मुस्कान बिखेरते हुए 
लबोंकी दिलकश हलचल से
मानों, मुझपरही करम फरमाया!
या रब, मेहेरबानी!
नाम तो मालूम हुआ!
जितना हसीन मुखडा
उतनाही हसीन नाम
भूल ना जाऊं इसलिए
उसे याद करने लगा
याद क्या करने लगा
मैं तो उस नाम को
जपने ही लगा
तभी एक कोई चचा
बाजूमें आकर बैठे और पूछ लिए
"कहीं तुम शर्माजी के बेटे तो नहीं?
नाम क्या हैं तुम्हारा?"
मेरे जवाब से
वहॉंका हर शख्स
और खुद मैं,
भौचक्का रह गया 
मैंने कहां था,
"माधुरी!"

- संदीप भानुदास चांदणे (रविवार, १४/०५/२०२३)

No comments:

Post a Comment

पापणी

लवलवती पापणी... अश्रूंना घेऊन लपली, मिटल्याने झाली ओली आतल्या अंधारात तरी, पहा चमचमली ...लवलवती पापणी थरथरती पापणी... अश्रूंच्या लाटांनी, ब...