Saturday, December 22, 2012

बाला

मध्यान्न समयी
तळपत्या उन्हात
कोण ही बाला
अंधाऱ्या वस्त्रांत

काय कारण
त्यागूनी सदन
खिजवूनी भास्करा
चालली तोऱ्यात
कोण ही बाला
अंधाऱ्या वस्त्रांत

चकाकती कांती
नाजूक बांधा
प्रकाशपर्जन्यी
भिजली नखशिखान्त
कोण ही बाला
अंधाऱ्या वस्त्रांत

भाग्यवान मी जगती
दुसरे नसे कोणी
प्रतिमा धरून नयनी
गहिवरलो मनात
कोण ही बाला
अंधाऱ्या वस्त्रांत

- संदीप चांदणे.....

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