नीले आसमाँ के नीचे
मै खड़ी हूँ आँखे मीचे
यहाँ है फूलों से भरे
सात रंग के बगीचे
तितली गाती धुन कोई
मुझको बुलाती हैं
मैं भी दौड़ जाती हूँ
उसके पीछे पीछे
हवा के आतेजाते झोंके
सहलाते है पेड़ो को
सूरज की पड़ती किरणे
मनमें जाये उमंग सींचे
ऊँचे खड़े पहाड़ दिखते
दिखते उड़ते पंछी
दिन ये बड़ा सुहाना लगे
मुझको बाहोंमें भींचें
- मुग्धा संदीप चांदणे (शनिवार, १९/०४/२०२५)
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