उगता जीवन इस माटीसें
उगकर फलफूलता यहाँ
कहते इस ग्रह को पृथ्वी
रहते जीवजंतू सारे जहाँ
इस धरती पर हैं समंदर
और पर्वत अतिविशाल
हरियाली तन पे छायी है
सरपे पुरवाई का गुलाल
सात समंदर भूखंड सात
मानव भी अलग दिखते
कोई ऊँचा कोई नाटा
काले गोरे मिलकर रहते
कही वर्षावन, कही रेगिस्ता
कही लहलहाते खेतखलिहान
भरमार भौगोलिक स्थलोंकी
अपने जैसा दूजा न लेकिन
धरती का हैं हमसाया
चंद्रमा रातके आकाशमें
और उजाला लेकर आता
सूरज, भर अपनी बाहोंमे
पृथ्वी अविरत चलती रहेगी
जब तक सूरज चांद रहेंगे
मानव के संग नए जीव
धरा के आचलमें मिलेंगे
- मुग्धा संदीप चांदणे (मंगळवार, २२/०४/२०२५)
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