Wednesday, July 29, 2020

मन रे तू काहे खेल रचाय?

मन रे तू काहे खेल रचाय?
जग सारा घुमाय, बैठ बिठाय

मत कहे ठहर ठहर
जे कोसों दूर है ठाय
कब कही अब चला चल
जे पास नदी जल बहाय

मन रे तोरा खेल गजब
जे ना मिले उसे दिखाय
पास जे चमके सोनरसयी
उसे मोह के फांसा बताय

मैं राही इस राह अकेला
ढूंढू साथी कही मिल जाय
जो मैं देखूं तू मुसकाय
बात भीतर की जान जाय

मन तू कहाँ का है राजा?
जरा आके सामने दिखाय
देखूं मैं भी तुझे परखके
जो तू दिखे जैसा जताय

- संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, २९/०७/२०२०)

अकबर बिरबल (बँक व्हिजीट)

अकबर बिरबल ( बँक व्हिजीट ) ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------...