Tuesday, July 20, 2021

तरकश-ए-तीरोंसी ऑंखोसे लडना है

तरकश-ए-तीरोंसी ऑंखोसे लडना है,
इन पर्दो से लड मरने में खाक मजा है?


यूं फेरी निगाहे, अंदाज-ए-रसूक से
मेरा मरना तुमपे क्या अब बेवजा है?


आलम-ए-बेरूखी चश्मेसी साफ है अब
पहरेदार गली मे अब कोई दुजा है?


अश्को से नहायी लो गिर पडी ये गजले
अलफाज-ए-नगीना अब नही पाकिजा है?


-संदीप चांदणे (२०/१०/१५)

Monday, July 19, 2021

हा पक्षी उडाला

हा पक्षी उडाला
वाऱ्याला शीळ देत
भवताल जागवित
राने वने फुलवित

हा पक्षी उडाला
स्वैरपणे विहरण्या
निळेभोर नभ सारे
कवळून टाकण्या

हा पक्षी उडाला
चाऱ्यासाठी नव्हे
थवा होऊनि उडण्या
सोबती ज्यांना हवे

- संदीप चांदणे (सोमवार, १९/०७/२०२१)

Thursday, July 1, 2021

जडे रहो


अटल अचल विश्वास, रख अपने आपमें
हो भले अकेले तुम, जहां भी हो खडे रहो
कोई न गिरा सकेगा बस तुम जो करो यहीं
धरती के कण कण से जुडे रहो, जडे रहो

- संदीप चांदणे (बुधवार, ३०/६/२०२१)

रोशनदान

कभी हुआ करता था जो एक शानदार मेहराबदार रोशनदान आज उसकी शान-ओ-शौकत एक पान की दुकान नोचती हैं उस ठेलेपर तो जमघट लगताही होगा बेकदरदान जमाने का ...