Wednesday, December 9, 2020

ये मोहब्बत नही ये तो कुछ और है

वो कहते है हम हुए है कुछ खफा
बात सच है मगर बात कुछ और है
ना मिलना सदाही गुमसूम रहना
ये नही दिल्लगी ये तो कुछ और है

हम करे भी तो क्या परेशां है हम
लडखडाही गये जो मिलाये कदम
कहना चाहूं तो तुम बोलनेही लगो
ये नही गुफ्तगू ये तो कुछ और है

हमने चाहा जो पास आना कभी
तुम हमेशा मुडे देखकरही वही
बुलातेभी हो तो बेरूखीसी दिखे
ये नही सलींका ये तो कुछ और है

किसे ये फसाना अधूरा सुनायें
हवा हो गयी मेरी सर्द आहे
आंसू भी आयें तो तुमने पोंछें नही
ये नही मोहब्बत ये तो कुछ और है

- संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, ०९/१२/२०२०)

रोशनदान

कभी हुआ करता था जो एक शानदार मेहराबदार रोशनदान आज उसकी शान-ओ-शौकत एक पान की दुकान नोचती हैं उस ठेलेपर तो जमघट लगताही होगा बेकदरदान जमाने का ...