तरकश-ए-तीरोंसी ऑंखोसे लडना है,
इन पर्दो से लड मरने में खाक मजा है?
यूं फेरी निगाहे, अंदाज-ए-रसूक से
मेरा मरना तुमपे क्या अब बेवजा है?
आलम-ए-बेरूखी चश्मेसी साफ है अब
पहरेदार गली मे अब कोई दुजा है?
अश्को से नहायी लो गिर पडी ये गजले
अलफाज-ए-नगीना अब नही पाकिजा है?
-संदीप चांदणे (२०/१०/१५)
आलम-ए-बेरूखी चश्मेसी साफ है अब
पहरेदार गली मे अब कोई दुजा है?
अश्को से नहायी लो गिर पडी ये गजले
अलफाज-ए-नगीना अब नही पाकिजा है?
-संदीप चांदणे (२०/१०/१५)
No comments:
Post a Comment