Sunday, April 20, 2025

समर्पित भावसे झरना

कहीं दूर तुम जंगल में

रहते हो निबिड़ वनमें

एक बार जो दृक हुए

बस जाते हो फिर मनमें 


गाती बूँदे एक स्वर में

झरझर चोटीसे झरती 

और सुनाती हैं सृष्टीको

अपनी कलकल गिरती


ऊंचे पहाड़ोसे रिसते 

लाते जलवर्षा हो दूधी

रूप अपना बदलकर  

बन जाते हो एक नदी


झरने, हो महान गिरकर

तुम, हमको ये हैं सीखना

समर्पित भावसे अपनेको

निःसंकोच झोंक देना


- मुग्धा संदीप चांदणे (रविवार, २०/०४/२०२५)

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