Friday, April 25, 2025

अशाच एका संध्याकाळी

अशाच एका संध्याकाळी
उन्हं व्हावीत सोनेरी
आणि चकाकून जावीत
ढगांच्या रूपेरी झालरी

अशाच एका संध्याकाळी
ह्र्दय भरून यावे
सुगंधी, मधुर, वाऱ्याला
उचलुनि कडेवर घ्यावे

अशाच एका संध्याकाळी
मनी आनंद फुलावा
पहिल्या पावसातला
हिरवाकंच अंकुर व्हावा

- संदीप भानुदास चांदणे (सोमवार २५/०४/२०११)

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