Friday, April 25, 2025

नरो वा कुंजरो वा

नरो वा कुंजरो वा

पोटाची खळगी भरणे कारणी
स्वार्थें, वैऱ्याची हो मनधरणी

हसणे होईल पातक घोर
भवती मूर्खांचा वाढेल जोर

सत्य नित्य नको ओठी
वाचेत मुग्धतेची पराकोटी

आणि...

मती निष्काम होय तेधवा
म्हणावे, नरो वा कुंजरो वा

- संदीप भानुदास चांदणे (रविवार, १०/०३/२०१९)

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