Thursday, February 27, 2014

सफर

ये ढलान की मस्ती बता रही है,
किस कदर चोटी, चढके है आये!

लुभाती वादियां मिली राहोमें
उनसेभी कर किनारा है आये!

जाना हमने ना रूकता कोई
हम भी कभी, ना थमके है आये!


- संदीप चांदणे (27/02/14)

No comments:

Post a Comment

नाकाम मुहब्बत का इनाम हो तुम

किसी नाकारा दुवा की इंतेहा हो तुम कयामत है के अभी तक जिंदा हो तुम सामने आती हो तो यकी नही आता लगता है खुली आंखो का सपना हो तुम अंजाम मुफ्लीस...