बराच वेळ बसल्याचे, माझ्या, उशिरा लक्षात आले
दगडासोबत जेव्हा त्यांनी, मला शेंदूर फासले!
- संदीप चांदणे (28/9/14)
मधुर शीळ मी वार्याची, पावसाची मी सन्ततधार, सडा पाडतो गीतांचा, मी शब्दांचा जादूगार....
बराच वेळ बसल्याचे, माझ्या, उशिरा लक्षात आले
दगडासोबत जेव्हा त्यांनी, मला शेंदूर फासले!
- संदीप चांदणे (28/9/14)
अकबर बिरबल ( बँक व्हिजीट ) ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------...