Saturday, February 13, 2021

वाऱ्यावर जसे पान

नीज भरते दिशांत
माझे रिते नीजपात्र
उतरूनि ये अंगणी
जरि हळुवार रात्र
रात्र रात्र जागते
गोड स्वप्नातूनि
धुंद गात राहते
अबोल मौनातूनि

येती कानी दूरून
सूर सारंगीचे छान
मन खाई हेलकावे
वाऱ्यावर जसे पान
पान पान जागते
पाचूच्या बनातूनि
शुभ्र सोनसकाळी
झळाळते दवांतूनि

- संदीप भानुदास चांदणे (मंगळवार, १६/०३/२०२१)

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