Friday, October 22, 2021

मिठाई और मिठापन

कहीं किसी रोज, किसी गांव मे एक अमीर आदमी को कुछ ना-गुजार बीमारी उभर आयी. फिर वो आहिस्ता से दिमाग पर छायी. बेचैनी का आलम ये रहा की जनाब कुछ खा-पी न सके, ठीकसे सो भी न सके. झल्लाते हुए पहुंचे हकीम के दरवाजे पर. चौपाल लगाये हकीमने नब्ज टटोली और बेमजेदार सूरमे कहा, जनाब, आपको अब करना है परहेज मिठा खानेसे, मिठाईयोंसे!

ये सुन, कुछ गोल मटोल लड्डू, कुछ पेढे, कुरकुरी रसभरी जलेबीयां, रबडीयोंके प्याले, सरबतोंके जाम, कुछ बर्फिया, कतलींया, हलवें की प्लेटे और कुछ पेठे उसकी आंखोंके आगे एक पल के लिए फुदक लिए और फिर हवांमे जैसे घुल गयें.

उसे लगा था कोई दवाई काढा दिया जायेगा, उसका मर्ज दो चार दिनोंमे ठीक हो जायेगा. पर मीठे और मिठाईयोंसे आनेवाली जुदाई उसे बदतर जिंदगी की ओर इशारा कर रहे थे. उसने अपनी बिवी, बच्चों और नौकरोंको बुलाया, सबको अपनी हालतसे वाकिफ कराया और फर्माते हुए कहा की, "मुझे मीठा खाना है सख्त मना लेकिन मै नही चाहता मिठाई छोडना. कुछ ऐसा किया जाये की मिठाईमेसे मीठापन अलग किया जाये."

फिर मिठाईयां उसके सामने ला बिछाई गई. आगे क्या करना है किसीको कतई अंदाजा नही था. उसने एक लड्डू उठाया और नौकर से कहा इसे धोकर लाओ. नौकर लड्डू धो लाया, आदमी ने मुँह को लगाया. लड्डू बस गीला हुआ था पर मिठास तो बरकरार थी. ये तरीका बेअसरदार साबित हुआ. ऐसे और बेतुके तरीके शाम ढलने तक दोहराये गए. सबकी छुट्टी तो हुई लेकिन बस कल सुबह तक के लिए.

सुबह फिर उसके सरपे मानो खून सवार हुआ. अमीर आदमी ने अपने गांवमेंही नही पूरे सूबेमें सभींको कहलवाया, जो भी मिठाईमेसे मीठापन अलग कर देगा वो उसकी आधी जायदाद का हिस्सेदार होगा. बात हवा के जैसे फ़ैल गई. अगले दिनसे जायदाद पाने की चाहत में लोग अच्छी-खासी गिनतीमें उसके घर आने लगे.

ऊटपटाँग तरीकोंकी होड़सी लग गयी. घरमें पहलेसे बनी मिठाईयां इन प्रयोगोंके भेंट चढ़ी तो एक आँगनमें एक तरफ एक बाड़ा लगाया गया. जहाँ, दिनभर उसके नौकर हलवाई से मिठाई बनाकर मिठाईयोंको थालमें भरकर जो लोग उसपर अपना बीरबलसा दिमाग लगाना चाहते थे उनके सामने ला रख देते थे. ये सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा था.

फिर एक रोज एक शख्स जों की उस गांव का नही था, वहाँसे गुजर रहा था. उसने, यह अजीब वाकिया उस गांव में घटते देखा. उसने देखा के उस अमीर आदमी के घर के आगे लोगोंका हुजूम उमड पडा है. लोक अपनी अपनी बारी आने का बेसबरीसे इंतजार कर रहे है और जिसकी बारी आती वो अपना नुस्खा आजमाकर देखता और मिठाईमेंसे मिठापन जुदा करने की इस शर्त में हारकर अपना रस्ता नांपता. फिर उसने नजर घुमाकर देखा तो घर के सामने उसे एक चौपाईपे बैठा वह अमीर आदमी दिखायी पडा जिसने यह तमाशा लगा रख्खा था. 

राहगीर अमीर आदमीके सामने जा खडा हुआ और उसे समझाते हुए बोला. "जनाब, अव्वल तो आप मीठा नहीं खायेंगे तो कोई आसमानी टूट नही पडेगी. और भी स्वाद है जिसे चखते आप आगे जैसे तैसे काट ही लोगे. दूसरी बात यें की बनी मिठाईमेंसे मीठापन अलग करने के बजाय मिठाई बनाते समय अगर उसमें मीठाही न डाला जाय तो मिठाई मीठी बनेगी ही नही. जिस तरह फूल से खुशबू जुदा नहीं की जा सकती या फिर किसी तरह आप अगर कोई बेमेहक फूलही उगालें तो उस फूल की चाहत किस नाजनीन को होगी? उसी तरह आप जो इतनी जद्दोजहत कर रहे है सब बेफजूल हैं." अमीर आदमी के चेहरे पर एकदमसें मायूसी छा गयी. उसका दिल जैसे बैठ गया. लेकिन उसने इस राहगीर की बात को समझ लिया और मान लिया की अपनी मीठा खानेकी जिदने उसे मजबूर किया. लेकिन वो गलत था. अपनी सेहत की खातिर मीठेसे जुदाई को उसने आखिरकार समझ लिया और फौरन अपने घर के आंगन मे शुरू तमाशा रूकवा दिया.

- संदीप भानुदास चांदणे ( शुक्रवार, २२/१०/२०२१)

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एक खयाल यूं हैं, अगर बन पाते तो खुदा ही बन जाते काफीर हूं इसीलिए दुवामें हाथ नहीं उठाये जाते  - संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार , १७/१०/२०२४)