खुदिको ढूंढे और खुदिको मिल आये
बहुत जर्जर हो चली अपनी दास्ता
धागा-ए-इश्क लेकर इसे सिल आये
किसीका जीत ले इल्म-ए-हासील सें
किसी हबीबको दे अपना दिल आये
हो तरन्नुम-ए-हयात चमन से आश्ना
सुनें तो गुलोंकी बहारें खिल आये
- संदीप चांदणे (मंगळवार, ८/११/२०२१)
मधुर शीळ मी वार्याची, पावसाची मी सन्ततधार, सडा पाडतो गीतांचा, मी शब्दांचा जादूगार....
एक खयाल यूं हैं, अगर बन पाते तो खुदा ही बन जाते काफीर हूं इसीलिए दुवामें हाथ नहीं उठाये जाते - संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार , १७/१०/२०२४)
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