Thursday, March 2, 2023

लख्ख रस्ता

एरवी फक्त कलकलणारा
हा कर्कश्श नीरस रस्ता
पाठ फिरवता रवीकिरणांनी
लख्ख पेटूनी उठला

यांत्रिक रथ धावती रांगेत
जणू जळते पळते पलिते
स्थिरावून दृष्टी बघता
जणू जाळाची रेघच दिसते

माळापलिकडे बसलेल्या
इमारती अंधारात उठल्या
बुडलेल्या दिवसा धुक्यात
आता रोषणाईने दिपल्या

मावळेल हळूहळू
घरघर या आवाजांची
ज्योतही मंदावत जाईल
ह्या धावत्या पलित्यांची


- संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार, ०२/०३/२०२३)

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