Saturday, September 26, 2015

घर माझे

घराला माझ्या
सुरेख अंगण
सुखाने नित्य
होई शिंपण

आहे जागता 
खंबीर उंबरा
मर्यादा लांघण्या
ना देई थारा

घराची माझ्या
ओसरी खुणावे
थकल्या पायांना
देई ती विसावे

करते स्वागत
येताना हसून
निरोपाही सज्ज
दाराचे तोरण

ओटा न्यारा
सांजेस बहरतो
गप्पांत साऱ्यांच्या
हळूच निजतो

माजघर खोल
मनाच्या सारखे
हक्काची जागा
सुख-दु:खा देते

देवघर पवित्र
शांती आणते
देवाला हात
धरून बसविते

घर माझे
सुरेख देखणे
काळोख्या रातीचे
नक्षत्रलेणे

- संदीप चांदणे (१७/९/२०१५)

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