जमाने लगे थे जिसको तलाशने मे
वही वक्त आज काटने दौड रहा है
सुकूं मिलेगा आखिर बस यही सोचकर
हमने उसीं वक्त का हर जखम सहा है
वक्त से लड झगडकर एक लम्हा था मिला
आज आंसू बनकर पलकों से बहा है
जो है जैसा है बस है यही रोशन
लौट आये वक्त, ऐसा हुआ कहाँ है?
- रोशन विदर्भी (१२/०४/२०२०)
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