Thursday, November 5, 2020

वक्त काटने दौड रहा है

जमाने लगे थे जिसको तलाशने मे
वही वक्त आज काटने दौड रहा है

सुकूं मिलेगा आखिर बस यही सोचकर
हमने उसीं वक्त का हर जखम सहा है

वक्त से लड झगडकर एक लम्हा था मिला
आज आंसू बनकर पलकों से बहा है

जो है जैसा है बस है यही रोशन
लौट आये वक्त, ऐसा हुआ कहाँ है?

- रोशन विदर्भी (१२/०४/२०२०)

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एक खयाल यूं हैं, अगर बन पाते तो खुदा ही बन जाते काफीर हूं इसीलिए दुवामें हाथ नहीं उठाये जाते  - संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार , १७/१०/२०२४)