Saturday, August 22, 2020

जिंदगीसे जंग

रोज सवेरे जब उठ जाता हूं
जिंदगी के खिलाफ जंग के लिए
अपने आप को तैय्यार करता हूं
दिनभर के वार-पलटवारोंके बाद
जिंदगी फिर कल के लिए छोड देती है
तब, रात को एक नज्म लिखता हूं
जिंदगी को समझने और समझाने में
कुछ अलफाज खर्च कर देता हूं
अब तक, न तो जिंदगी समझ पायी है
न तो मैं अभी हारकर बैठा हूं!

- संदीप भानुदास चांदणे (मंगळवार, १८/८/२०२०)

Wednesday, August 12, 2020

डाली के गिरते फूल

डाली पे लदे
सुहाने, सुंदर फूल जब
गिर जाते है एकाएक
तब याद आती है उनकी महक
यूंही कभी, जब पास से गुजरते हुए
उन्हें छूकर अजीब सी खुशी
महसूस की होती है और
पी लिया जैसे लगता है
नाजूक रंगीन सुराहीसे
मदहोश कर देने वाला
खुशबू का जाम

अब जब डाली पे ना रहे
तो वो फूल जिन्हें
रह गया था छूना
या जी भरके देखना
छोड जाते हैं आह
धीमीसी जाती हुईं सांसो में
और तभी लगता है जैसे
जिंदगीसे कुछ रंग उड गये हो
और शामके मद्धम झोंकेंभी
बगैर कोई खुशबू लिए
खाली हाथ आयें हो

वैसे, और भी फूल है बगीचेंमे 
जिनको देखकर खिल जाता हूँ
खुशबू से सराबोर हो नहाता हूँ
और कुछ अर्सेसे जो समझा हैं
वों यह है के,
बेमेहक फूलोंके पौधे
जहनसे उखाड फेकना सही हैं
क्योंकी,
ये बगीचा महकता हैं
तभी आंखे मूंदकर
फूलोंको देखा जा सकता हैं

- संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, १२/०८/२०२०)

This phase shall pass

I am the king, though, not wearing a crown
Ready to take another quiet day of lockdown

Birds are chirping and sun is rising as usual
Me enjoying, sitting in balcony, being casual

Forgotten all the pretty leisure's of my life
Forgotten drinks, drinking tea, brought by wife

Time is passing, though, clocks are shutty
Fading the glow and charm from the beauty

This phase shall pass, the mind always says
For the unknown future, present always pays

- Sandeep Chandane (Monday, 04/05/2020)

नाकाम मुहब्बत का इनाम हो तुम

किसी नाकारा दुवा की इंतेहा हो तुम कयामत है के अभी तक जिंदा हो तुम सामने आती हो तो यकी नही आता लगता है खुली आंखो का सपना हो तुम अंजाम मुफ्लीस...