Wednesday, August 12, 2020

डाली के गिरते फूल

डाली पे लदे
सुहाने, सुंदर फूल जब
गिर जाते है एकाएक
तब याद आती है उनकी महक
यूंही कभी, जब पास से गुजरते हुए
उन्हें छूकर अजीब सी खुशी
महसूस की होती है और
पी लिया जैसे लगता है
नाजूक रंगीन सुराहीसे
मदहोश कर देने वाला
खुशबू का जाम

अब जब डाली पे ना रहे
तो वो फूल जिन्हें
रह गया था छूना
या जी भरके देखना
छोड जाते हैं आह
धीमीसी जाती हुईं सांसो में
और तभी लगता है जैसे
जिंदगीसे कुछ रंग उड गये हो
और शामके मद्धम झोंकेंभी
बगैर कोई खुशबू लिए
खाली हाथ आयें हो

वैसे, और भी फूल है बगीचेंमे 
जिनको देखकर खिल जाता हूँ
खुशबू से सराबोर हो नहाता हूँ
और कुछ अर्सेसे जो समझा हैं
वों यह है के,
बेमेहक फूलोंके पौधे
जहनसे उखाड फेकना सही हैं
क्योंकी,
ये बगीचा महकता हैं
तभी आंखे मूंदकर
फूलोंको देखा जा सकता हैं

- संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, १२/०८/२०२०)

No comments:

Post a Comment

बाकावरचे सरकणे

नको नको रे साजणा असा दूर दूर जाऊ तुझ्या बावऱ्या डोळ्यांनी नको बावरून पाहू कुठवर जाशील रे  दूरवर सरकून? घसरून पडशील बाक जाईल संपून  नको असता ...