रोज सवेरे जब उठ जाता हूं
जिंदगी के खिलाफ जंग के लिए
अपने आप को तैय्यार करता हूं
दिनभर के वार-पलटवारोंके बाद
जिंदगी फिर कल के लिए छोड देती है
तब, रात को एक नज्म लिखता हूं
जिंदगी को समझने और समझाने में
कुछ अलफाज खर्च कर देता हूं
अब तक, न तो जिंदगी समझ पायी है
न तो मैं अभी हारकर बैठा हूं!
- संदीप भानुदास चांदणे (मंगळवार, १८/८/२०२०)
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