Wednesday, March 17, 2021

मैं क्या सोचता हूँ

मैं क्या कुछ नही सोचता
ये तुम सोच नही सकती
तुम्हारी सोचको है मर्यादा
अनखिंची अनकही अनसुनी

दुनिया और समाज की सोच से
तुम्हारी सोच मिलनी चाहिए
ये किसीने युगों पहले सोच रखा है
पर आज तक क्यूं इसे ढोया जा रहा है
ये कोई नही सोचता

अब तुम सोच कर देखों
की, मैं भी क्या क्या सोचता हूँ
तुम्हारे लिए, हमारे लिए!

संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, १७/०३/२०२१)

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खुदा ही बन जाते

एक खयाल यूं हैं, अगर बन पाते तो खुदा ही बन जाते काफीर हूं इसीलिए दुवामें हाथ नहीं उठाये जाते  - संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार , १७/१०/२०२४)