Friday, March 19, 2021

आश्वस्त सुबह

आश्वस्त सुबह
थकी दोपहरी के साथ
अंगडाई भरती सांज के सायें लिए
रात के मौन मलमली आंचलसे मुझे बांधे हुए
फिरसे मिलने के लिए पुरवाई पर एक पुकार छोडती है
तब वह पुकार मेरी खालिस मगर एक वीरान जीवनी बन जाती है
जब मेरी जीवनी अपनी करूणामय हाथोंमे लिए तुम पढती हो
और प्रीतभरी अनुपम आंखोंसे उसे संवार लेती हो
तो वह बन जाती है फिरसे
शबनम से सजी हुई
आश्वस्त सुबह

- संदीप भानुदास चांदणे (शुक्रवार, १९/०३/२०२१)

No comments:

Post a Comment

खुदा ही बन जाते

एक खयाल यूं हैं, अगर बन पाते तो खुदा ही बन जाते काफीर हूं इसीलिए दुवामें हाथ नहीं उठाये जाते  - संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार , १७/१०/२०२४)