थकी दोपहरी के साथ
अंगडाई भरती सांज के सायें लिए
रात के मौन मलमली आंचलसे मुझे बांधे हुए
फिरसे मिलने के लिए पुरवाई पर एक पुकार छोडती है
तब वह पुकार मेरी खालिस मगर एक वीरान जीवनी बन जाती है
जब मेरी जीवनी अपनी करूणामय हाथोंमे लिए तुम पढती हो
और प्रीतभरी अनुपम आंखोंसे उसे संवार लेती हो
तो वह बन जाती है फिरसे
शबनम से सजी हुई
आश्वस्त सुबह
- संदीप भानुदास चांदणे (शुक्रवार, १९/०३/२०२१)
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