अब याद मुझे आती है वो
तेरी पनियाई आंखे हसती
जब मैं अपनी पलके मुंदू
मुझसे आके बाते करती
गहरी कितनीही गहरी थी
तालाब हो एक जैसे बनमें
मैं डूबता अपनेकों पाऊ
जबभी देखू खुदको उनमें
जब उठ जाती वो मेरी तरफ
मीठीसी कसक एक आती थी
झुकती थी कुछ कहे बिना
तब, सांसे मेरी रूक जाती थी
समय ने ली दूजी करवट
अब सिर्फ बची यादे उनकी
तब लगता था मेरे दो जहाँ
देते थे अंदरसे झलकी
वो प्यार और सुकूं अब कहाँ?
वो कशीश उनसी अब कहाँ?
मैं बन गयां हूँ एक लुटा शहर
इसमें 'रोशन' रौनके अब कहाँ?
- संदीप चांदणे (सोमवार १६/११/२०)
No comments:
Post a Comment