Friday, March 19, 2021

आश्वस्त सुबह

आश्वस्त सुबह
थकी दोपहरी के साथ
अंगडाई भरती सांज के सायें लिए
रात के मौन मलमली आंचलसे मुझे बांधे हुए
फिरसे मिलने के लिए पुरवाई पर एक पुकार छोडती है
तब वह पुकार मेरी खालिस मगर एक वीरान जीवनी बन जाती है
जब मेरी जीवनी अपनी करूणामय हाथोंमे लिए तुम पढती हो
और प्रीतभरी अनुपम आंखोंसे उसे संवार लेती हो
तो वह बन जाती है फिरसे
शबनम से सजी हुई
आश्वस्त सुबह

- संदीप भानुदास चांदणे (शुक्रवार, १९/०३/२०२१)

Wednesday, March 17, 2021

मैं क्या सोचता हूँ

मैं क्या कुछ नही सोचता
ये तुम सोच नही सकती
तुम्हारी सोचको है मर्यादा
अनखिंची अनकही अनसुनी

दुनिया और समाज की सोच से
तुम्हारी सोच मिलनी चाहिए
ये किसीने युगों पहले सोच रखा है
पर आज तक क्यूं इसे ढोया जा रहा है
ये कोई नही सोचता

अब तुम सोच कर देखों
की, मैं भी क्या क्या सोचता हूँ
तुम्हारे लिए, हमारे लिए!

संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, १७/०३/२०२१)

Tuesday, March 16, 2021

आयुष्याचं सोनेरी पान

तुमच्या माझ्या आयुष्यातलं एक पान विरलेलं असतं 
बघता बघता एक वर्ष पुन्हा एकदा सरलेलं असतं

लहान मोठं कसंही असो कडू-गोड आठवणींचं पान
वहीत ठेऊन जपायचं हे, तुमचं माझं ठरलेलं असतं

एकेका टप्प्यावर एकेक पान उगवून येतं, फुलत जातं 
मागे ठेवून अशी पानं आयुष्य पुढेच चाललेलं असतं

तुम्ही, मी, वा आणखी कोणी विसावल्यावर अभिमानाने
ह्यातलंच एखादं तरी हाती, सोनेरी पान धरलेलं असतं

संदीप भानुदास चांदणे (बुधवार, ३१/१२/२०२०)

नाकाम मुहब्बत का इनाम हो तुम

किसी नाकारा दुवा की इंतेहा हो तुम कयामत है के अभी तक जिंदा हो तुम सामने आती हो तो यकी नही आता लगता है खुली आंखो का सपना हो तुम अंजाम मुफ्लीस...