Sunday, May 31, 2020

लॉकडाऊन के बाद

उन्हीं पुराने दोस्तो के साथ
फुर्सत से गप्पे लडाने है
और उनके सुस्त पडे
ठहाके जगाने है
आसमां को सुनाने के लिए
चाय की सुर्कीया
उसी दूरके ठेलेपे जाके
लेनी है
फिर चाहे,
झुलसा देनेवाली
दोपहरकी धूप हो,
या हो,
शाम के रंगीन फव्वारे
क्रिकेट भी खेलना है
जहाँ जगह मिले वहाँ
बच्चोंको घुमाना है
बहन-भांजे सबसे
मिल आना है
जिंदगी फिर एक बार
और बेहतर तरीके से जिने की
कोशीश करनी है
बस ये,
साफ फर्श पर अचानक
हाथो से चाय की प्याली गिरी हो
और उसमे रख्खी हुई
सारी चाय फैल रही हो
तितर बितर होकर
जरासी भी ढलान मिले
उस ओर
उसी तरह से
बढता हुआ ये
सुहाने जिंदगीपर
भद्दा दाग लग रहा लॉकडाऊन
पूरी तरह से
साफ हो जाने के बाद!

- संदीप चांदणे (३१/०५/२०२०)

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खुदा ही बन जाते

एक खयाल यूं हैं, अगर बन पाते तो खुदा ही बन जाते काफीर हूं इसीलिए दुवामें हाथ नहीं उठाये जाते  - संदीप भानुदास चांदणे (गुरूवार , १७/१०/२०२४)